प्रत्येक मनुष्य में आत्मा को पहचानकर अपना आत्यंतिक कल्याण (मोक्ष प्राप्ति) करने की शक्ति होती है| लेकिन, इस मार्ग में विषय सब से बड़ा बाधक कारण बन सकता है| सिर्फ प्रत्यक्ष ज्ञानीपुरुष ही विषय आकर्षण के पीछे रहे विज्ञान को समझाकर उसमें से निकलने में हमारी सहायता कर सकते हैं| प्रस्तुत पुस्तक में पूज्य दादाश्री ने विपरीत लिंग के प्रति होते आकर्षण के इफेक्ट और कॉज़ का वर्णन किया हैं | उन्होंने यह बताया है कि विषय–विकार किस प्रकार से जोखमी हैं - वे मन और शरीर पर किस तरह विपरित असर डालते हैं और कर्म बंधन करवाते हैं| प्रस्तुत पुस्तक के खंड-१ में मूल रूप से आकर्षण- विकर्षण के सिद्धांत का वर्णन किया गया है और साथ ही यह आत्मानुभव में किस प्रकार से बाधक है और ब्रम्हचर्य के माहात्मय के प्रति समर्पित है| प्रस्तुत पुस्तक खंड- २ में ब्रम्हचर्य पालन करनेवाले निश्चयी के लिए सत्संग संकलित हुआ है | ज्ञानीपुरुष के श्रीमुख से ब्रम्हचर्य का परिणाम जानने के बाद उसके प्रति आफरीन हुए साधक में उस तरफ कदम बढ़ाने की हिम्मत आती है। ज्ञानी के संयोग से, सत्संग व सानिध्य प्राप्त करके, मन-वचन-काया से अखंड ब्रम्हचर्य में रहने का दृढ़- निश्चयी बनता है| ब्रम्हचर्य पथ पर प्रयाण करने हेतु और विषय के वट-वृक्ष को जड़-मूल से उखाड़कर निर्मूल करने हेतु इस मार्ग में बिछे हुए पत्थरों से लेकर पहाड़ जैसे विघ्नों के सामने, डगमगाते हुए निश्चय से लेकर ब्रम्हचर्य व्रत से च्युत होने के बावजूद ज्ञानीपुरुष उसे जागृति की सर्वोत्कृत श्रेणियाँ पार करवाकर निर्ग्रंथाता की प्राप्ति करवाए, उस हद तक की विज्ञान- दृष्टी खोल देते हैं और विकसित करते हैं| तो यह पुस्तक पढ़कर शुद्ध ब्रम्हचर्य किस तरह उपकारी है, ऐसी समझ प्राप्त करें|
प्रत्येक मनुष्य में आत्मा को पहचानकर अपना आत्यंतिक कल्याण (मोक्ष प्राप्ति) करने की शक्ति होती है| लेकिन, इस मार्ग में विषय सब से बड़ा बाधक कारण बन सकता है| सिर्फ प्रत्यक्ष ज्ञानीपुरुष ही विषय आकर्षण के पीछे रहे विज्ञान को समझाकर उसमें से निकलने में हमारी सहायता कर सकते हैं| प्रस्तुत पुस्तक में पूज्य दादाश्री ने विपरीत लिंग के प्रति होते आकर्षण के इफेक्ट और कॉज़ का वर्णन किया हैं | उन्होंने यह बताया है कि विषय–विकार किस प्रकार से जोखमी हैं - वे मन और शरीर पर किस तरह विपरित असर डालते हैं और कर्म बंधन करवाते हैं| प्रस्तुत पुस्तक के खंड-१ में मूल रूप से आकर्षण- विकर्षण के सिद्धांत का वर्णन किया गया है और साथ ही यह आत्मानुभव में किस प्रकार से बाधक है और ब्रम्हचर्य के माहात्मय के प्रति समर्पित है| प्रस्तुत पुस्तक खंड- २ में ब्रम्हचर्य पालन करनेवाले निश्चयी के लिए सत्संग संकलित हुआ है | ज्ञानीपुरुष के श्रीमुख से ब्रम्हचर्य का परिणाम जानने के बाद उसके प्रति आफरीन हुए साधक में उस तरफ कदम बढ़ाने की हिम्मत आती है। ज्ञानी के संयोग से, सत्संग व सानिध्य प्राप्त करके, मन-वचन-काया से अखंड ब्रम्हचर्य में रहने का दृढ़- निश्चयी बनता है| ब्रम्हचर्य पथ पर प्रयाण करने हेतु और विषय के वट-वृक्ष को जड़-मूल से उखाड़कर निर्मूल करने हेतु इस मार्ग में बिछे हुए पत्थरों से लेकर पहाड़ जैसे विघ्नों के सामने, डगमगाते हुए निश्चय से लेकर ब्रम्हचर्य व्रत से च्युत होने के बावजूद ज्ञानीपुरुष उसे जागृति की सर्वोत्कृत श्रेणियाँ पार करवाकर निर्ग्रंथाता की प्राप्ति करवाए, उस हद तक की विज्ञान- दृष्टी खोल देते हैं और विकसित करते हैं| तो यह पुस्तक पढ़कर शुद्ध ब्रम्हचर्य किस तरह उपकारी है, ऐसी समझ प्राप्त करें|
samajha se prapta brahmacarya (purvardha) (In Hindi)
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Product Details
BN ID: | 2940153969152 |
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Publisher: | Dada Bhagwan Aradhana Trust |
Publication date: | 01/19/2017 |
Sold by: | Smashwords |
Format: | eBook |
File size: | 928 KB |
Language: | Hindi |